धर्म नाम का शब्द नहीं था
कभी हमारी जीभा पर
धर्म सत्य है, सत्य धर्म है
यही हमेशा सीखा पर
राम कृष्ण पर्याय बने थे
हमको सद्मार्ग दिखाने को
हम निराकार के माया पुतले
यही सत्य बतलाने को
इस अमूर्त विचार को मन में
धारण कैसे कर पाते
प्रतिमा में भगवान को देखा
औ गुरु के चरणों में झुक जाते
यज्ञ से ही संसार बना था
उसी पर शंका करते हो
मांस के टुकड़े कहते हो
जीवन की चिंता करते हो
एक बार एक भरी सभा में
तुमको भारत दिखलाया था
उस विवेक ने तुमको भी
वसुधा का अर्थ बताया था
हम ही अहिल्या, हम ही टेरेसा
हम ही बहन शिवानी है
हम ही रजिया, हम ही कल्पना
हम ही झांसी की रानी है
हम सिद्धार्थ की सत्य खोज है
हम सिक्ख गुरु के बच्चे है
रक्षा में तलवार उठी
नहीं धर्म बेचते टुच्चे है
जहाँ एक धागे की खातिर
भाई जान छिड़कता है
जहाँ राम भाई की खातिर
सिंघासन तज सकता है
जहाँ मित्र को प्रेम ह्रदय से
दो लोक दे दिए जाते है
अन्याय की खातिर लेकिन
गांडीव उठाये जाते है
नहीं उठी तलवार हमारी
कही धर्म फ़ैलाने को
न जबरन ही कोशिश की
तुमको राम बुलाने को
पर मेरी सच्ची श्रद्धा का
मखौल उड़ाया जाता है
कब जन्मे थे राम, कहाँ पर
प्रूफ मगाया जाता है ।
लेखक -भूपेंद्र सिंह